
श्रीहर्ष 12वीं सदी के संस्कृत के प्रसिद्ध कवि। वे बनारस एवं कन्नौज के गहड़वाल शासकों - विजयचन्द्र एवं जयचन्द्र की राजसभा को सुशोभित करते थे।
उन्होंने कई ग्रन्थों की रचना की, नैयायिकों की तर्कमूलक पद्धति से न्याय के सिद्धांतों का खंडन करनेवाला श्रीहर्ष का 'खण्डनखण्डखाद्य' नामक ग्रंथ अद्वैत वेदान्त की अति प्रकृष्ठ और प्रौढ़ रचना मानी जाती है,
इसके अतिरिक्त 'स्थैर्यविचारप्रकरण' और 'शिवशक्तिसिद्धि' नामक दो दार्शनिक ग्रंथों का श्रीहर्ष ने निर्माण किया था।
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2 comments
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Replyश्रीहर्ष, भारवि की परम्परा के कवि थे। उन्होंने अपनी रचना विद्वज्जनों के लिए की,
Replyन कि सामान्य मनुष्यों के लिए।
इस बात की उन्हें तनिक भी चिन्ता नहीं थी कि सामान्य जन उनकी रचना का अनादर करेंगे।
वह स्वयं स्वीकार करते हैं कि उन्होंने अपने काव्य में कई स्थानों पर गूढ़ तत्त्वों का समावेश कर दिया था,
जिसे केवल पण्डितजन ही समझ सकते हैं।
अत: पण्डितों की दृष्टि में तो उनका काव्य माघ तथा भारवि से भी बढ़कर है|
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